7. आंध्रप्रदेश डेयरी विकास निगम : भंवर चकरी
7. आंध्रप्रदेश डेयरी विकास निगम : भंवर चकरी
जैसा कि पूर्व अध्याय में आप पढ़ चुके हैं कि
हैदराबाद नगर निगम से अकारण आकस्मिक स्थानांतरण के कारण न केवल मेरा
आईएएस की नौकरी से मोहभंग हो गया था, वरन् राज्य सरकार में काम करने से भी मन ऊब गया था। इसलिए मैंने सैंट्रल डेपुटेशन के लिए अप्लाई
कर लिया। सन् 1983 की अंत में मेरी पोस्टिंग पेट्रोलियम मंत्रालय में हुई। वहाँ का
कार्यकाल पूरा होने के वाद अप्रैल 1988 को मैं फिर से अपने राज्य कैडर में लौट आया।
पुनः जब मैं राज्य कैडर में लौटा तो उस समय भी
मुख्यमंत्री श्री एन.टी. रामाराव ही थे। प्रोटोकाल के अनुसार मैं उनसे मिलने गया।
बातचीत सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में हुई। मेरे दृष्टिकोण में वह एक अच्छे अभिनेता हो सकते हैं मगर अच्छे प्रशासक
नहीँ। मगर आज मुझे वे काफी सहृदय नजर आने लगे। उन्होंने मुझे मेरे मनपसंद काम के बारे
में पूछा। मेरे लिए किसी भी काम के प्रति ऐसी कोई विशिष्ट रुझान वाली बात नहीँ थी, मैंने कहा, ‘‘जो भी कार्य मुझे सरकार देगी, उसमें मैं खुश रहूँगा।’’
मई 1988, इस महीने में मेरी
पोस्टिंग आंध्रप्रदेश डेयरी विकास
निगम के प्रबंध निदेशक के रूप में हुई। यह निगम, अमूल के बाद डेयरी क्षेत्र में हमारे देश की दूसरी बड़ी ईकाई थी और अच्छा काम कर रही थी।
अभी तक मैं इस निगम के
क्रियाकलापों से पूरी तरह अभिज्ञ भी नहीँ हुआ था, तभी मुख्यमंत्री के सचिव श्री पी.एल. संजीव रेड्डी ने
मेरे पास एक उदद्योगपति को भेजा, जिनके पास नियंत्रित वातावरण में चारा बनाने के उपकरण
यानि इनडोर फॉडर मशीन तथा उसकी तकनीकी बेचने का प्रस्ताव था। वे चाहते थे कि डेयरी विकास निगम उनके ये उपकरण
खरीदे तथा चारा और दूध बेचने वाले किसानों को बेचे। उन्होंने एक प्रजेंटेशन भी दिया, जिसमें यह दर्शाया गया था कि उस तकनीकी से हरा चारा एक रुपये प्रति किलो के भाव से पैदा किया
जा सकता था।
मैंने उन्हें समझाया कि हमारे राज्य के छोटे किसान हरा चारा नहीँ
खरीदते हैं। फसल काटने के बाद जो भूसा बच जाता है, वे अपने मवेशियों को वही खिलाते हैं और मुख्य फसल
काटने के बाद अपने खेतों में जो हरा-भरा चारा उगता है, उसे वे खिलाते हैं। इसलिए मुझे नहीँ लगता हैं कि आपके
उपकरणों द्वारा बना हरा चारा ये लोग खरीदेंगे। निगम के लिए इस कीमत पर चारे को बेचना मुश्किल होगा।
मैंने उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर नॉमिनल लीज पर हमारे कुछ चिंलिग सेंटर पर जमीन देने की पेशकश की। बेहतर यह
रहेगा कि पहले आप अपने खर्च पर हमारे
दो-तीन चिलिंग प्लांट पर ऐसे संयंत्र लगाएँ और उसकी कॉमर्शियल वायबिलिटी तथा मार्केट पोटेन्शियल सिद्ध करें। उसके बाद निगम यह तकनीकी और
उपकरण खरीद सकता है। मगर वे मेरी बात कहाँ मानने वाले थे? उनका प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए मुख्यमंत्री
कार्यालय से दो-तीन बार फोन आया, मगर मैं
अपनी बात पर अड़ा रहा। मैंने मुख्यमंत्री के सचिव को सूचित कर दिया कि प्रत्यक्षतः
यह प्रोजेक्ट व्यावसायिक रूप से वायबल नहीँ है और मैंने अपनी वैकल्पिक व्यवस्था के
बारे में भी उन्हें बता दिया।
जुलाई 1988, अंतिम सप्ताह। डेयरी विकास निगम में चार महीने भी
पूरे नहीँ हुए थे कि मेरे स्थानांतरण के आदेश आ गए। मैं आज तक नहीँ समझ पाया, क्या
उस चारा मशीन और मेरे
स्थानांतरण के बीच कोई गहरा संबंध था?
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