3. वाणिज्यिक कर : कामधेनु
3. वाणिज्यिक
कर : कामधेनु
मैंने इस अध्याय का नाम ‘कामधेनु’ इसलिए रखा कि यह एक ऐसा विभाग था, जिसमें लोग अंधाधुंध पैसा बना रहे थे।
सन् 1975 की शुरूआत में, मैं डिप्टी कमिश्नर (कॉर्मशियल टैक्सेज) बना। मेरे
प्रभार में चित्तुर और कडप्पा
जिले शामिल थे। चित्तुर जिले की सीमाएं तमिलनाडु और कर्नाटक से लगती है।
आंध्रप्रदेश के वाणिज्यिक कर विभाग ने अंतर-राज्यीय सीमाओं पर चेक पोस्ट खोल रखे
थे। ये चेक पोस्ट भ्रष्टाचारियों के लिए कामधेनु का वरदान समझी जाती थी, इसलिए मैं अक्सर उनका औचक निरीक्षण करता था। ऐसे ही
एक औचक निरीक्षण में मैंने देखा कि उस चेक पोस्ट से बहुत सारी
शराब से लदी हुई ट्रकें जा रही थी। यह चेक-पोस्ट तमिलनाडु की सीमा पर बना हुआ था।
जब मैंने वहाँ का रिकार्ड देखा तो पता चला कि पांडिचेरी से शराब लादकर वे ट्रकें
उस चेक पोस्ट से होते हुए यानम जा रही थी। कहाँ
पांडिचेरी, कहाँ चित्तुर? पांडिचेरी के रास्ते में चित्तुर सीधा नहीं पड़ता
था। कुछ तो गड़बड जरूर थी। यानम एक छोटा-सा गाँव है।अगर वहाँ का हर आदमी पानी की जगह शराब पीता हो
तो भी इतनी शराब की खपत वहाँ होना असंभव था। दाल में कुछ
तो काला जरूर था।
इस कालेपन को उजागर करने के लिए मैंने अपनी रणनीति
बनानी शुरू की, पांडिचेरी से आने वाली शराब
की प्रत्येक खेप पर नजर रखने के लिए एसिस्टेंट कॉमर्शियल टैक्स ऑफिसर को अपने
निर्देश दिए।अगली बार कोई भी शराब का
ट्रक इस चेक पोस्ट से गुजरे तो उसका पीछा कीजिए। जहां भी वह ट्रक अनलोड होता है,मुझे तत्काल
खबर करें। तीन-चार दिन बाद ही आधी रात को मुझे खबर मिली,"सर, यानम जाने वाली खेप चित्तुर में खाली की जा रही है।’’
मैं स्वयं टाऊन पुलिस स्टेशन से स्टेशन हाऊस ऑफिसर और
दो कांस्टेबलों को लेकर अंनलोडिंग साइट पर पहुँचा और देखा कि ट्रक खाली की जा चुकी थी। कुछ लोग शराब की
पेटियों को पगडंडी से पास के
किसी गोदाम में ले जा रहे
थे। मैंने वह गोदाम सील करवा दिया। दूसरे दिन मैंने छानबीन शुरू की। चित्तुर के चेक पोस्ट से पार हुए शराब के सारे कंसाइनमेंटों की सालभर की
लिस्ट मैंने मंगवाई।इस लिस्ट
के साथ मैंने एक अधिकारी को ईस्ट गोदावरी डिस्ट्रिक्ट के यानम बार्डर
पर बनी इंटरस्टेट चेक-पोस्ट के रिकॉर्डों से सत्यापन करने के आदेश दिए। उस अधिकारी ने सत्यापन के बाद बताया कि लिस्ट में लिखी गई कोई भी शराब की खेप
यानम बार्डर से पार ही नहीँ हुई है। अब साफ हो गया था, यानम के नाम
पर ट्रक वालों ने झूठे चालान कटवाए हैं। एक्साइज ड्यूटी और सेल-टैक्स
की चोरी के लिए यह सब किया जा रहा था,अर्थात् पांडिचेरी की शराब आंध्रप्रदेश के विभिन्न
जिलों में बेची जा रही थी।
अब आंध्रप्रदेश में शराब कहाँ-कहाँ बेची जा रही थी, इसका पता लगाना असंभव था।किन्तु पांडिचेरी के किन-किन शराब
विक्रेताओं से शराब आंध्रप्रदेश में आ रही थी, यह मालूम करना सहज था। कानून के अनुसार इन विक्रेताओं को आंध्रप्रदेश में ‘‘कैजुअल ट्रेडर’’ माना जा सकता था।
पूरे मामले की तहक़ीक़ात करने के लिए
मैं स्वयं पांडिचेरी गया। पांडिचेरी पहुँचकर मैं सीधे
वहाँ के मुख्य सचिव श्री एम. पार्थसारथी से मिला और मैंने उनसे आंध्रप्रदेश के इस
मामले की तहक़ीक़ात में सहयोग का अनुरोध
किया। श्री एम. पार्थसारथी असम कैडर के साफ छवि वाले आईएएस अधिकारी थे।बातचीत से मुझे लगा कि इस मामले में मुझे
पांडिचेरी सरकार से कोई आशा नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि पांडिचेरी में शराब व्यवसाय राजस्व का मुख्य साधन था।
आंध्रप्रदेश और पांडिचेरी में टैक्स रेट में बहुत ज्यादा अंतर
होने के कारण यह अवैध कारोबार पनप रहा था।
जैसा कि मैंने पहले बताया कि उन ट्रेडर्स पर, जिनके व्यापार के लिए आंध्रप्रदेश में कोई रजिस्टर्ड
जगह नहीँ थी,मगर वे दूसरी जगह से
आंध्रप्रदेश में अपना सामान बेचने के लिए लात थे, उन्हें केजुअल ट्रेडर्स मानकर उन पर सेल्स-टैक्स
लगाया जा सकता था। इसलिए मैंने चित्तुर चुंगी-नाका के रिकॉर्ड के आधार पर पांडिचेरी
के उन ट्रेडरों का टैक्स असैसमेंट करने के लिए ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी कर
दिया। इस नोटिस के खिलाफ ट्रेडरों ने मद्रास हाइकोर्ट में पीटिशन दायर की। मद्रास
हाइकोर्ट की सिंगल जज ने उस शो-कॉज पर स्टे दे दिया। बहुत मेहनत के बाद मैंने वह
स्टे ऑर्डर हटवाया, तो फिर उन ट्रेडरों ने दो
न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष अपील दायर की। इस पीठ ने फिर से स्टे ऑर्डर जारी कर दिया।
आठ साल बाद मैं एक बार फिर से वाणिज्यिक कर विभाग में
उच्च पद पर पदासीन हुआ, मैंने देखा कि तब तक वह स्टे वैसे ही लगा हुआ ही था।यह है हमारी न्याय व्यवस्था! जब कोई
अधिकारी किसी घोटाले को उजागर कर अपने राज्य की मदद करना चाहते हों, तो न्याय-तंत्र सही तथ्यों को जानने की कोशिश किए
बगैर उस पर स्टे दे देता हैं। कई साल लग जाते हैं उस स्टे को हटवाने में, और अवैध व्यापार सबकी आँखों के सामने फलता-फूलता नजर
आता हैं। ऐसे केसों के निपटान में अधिक विलम्ब होने के कारण
राज्य के राजस्व की अत्यधिक क्षति होती
है।
मगर किसे परवाह है? न सरकार को, न ही न्याय-तंत्र को? किसका दिल दु:खता है? केवल जागरूक नागरिक का अथवा जागरूक अधिकारी का? मगर दोनों की अपनी सीमाएँ निर्धारित होती हैं इस वजह
से विकराल भ्रष्टाचार की अग्नि-विभीषिका सभी को भस्मीभूत करते हुए आगे बढ़ती चली
जाती है।
हालांकि मद्रास हाइकोर्ट के आदेश के कारण मैं विगत वर्ष का टैक्स वसूल तो नहीँ कर पाया, मगर पांडिचेरी से अवैध शराब
का वितरण बंद होने के कारण आंध्रप्रदेश में शराब व्यवसाय से राजस्व बढ़ने लगा। इस रैकेट का
किंग-पिन कांग्रेस के एक सीनियर लीडर थे। वे मेरा ट्रांसफर करवाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वेंगलराव के पास
पहुँचे। यह बात मुझे मुख्यमंत्री के निजी सचिव श्री
प्रकाशराव ने बताई थी और कहा कि श्री वेंगलराव ने उस नेता की इस अनावश्यक मांग के
लिए बहुत फटकारा। ऐसे भी कुछ मुख्यमंत्री हुआ करते थे जो स्वयं
राजनैतिक दबाव सहनकर ईमानदार और स्वाभिमान अधिकारियों की रक्षा करते थे।
मेरा दूसरा कार्यकाल शुरू होता हैं इसी विभाग में
दूसरे रूप में। श्री के.चक्रवर्ती की नई बनी इनफोर्समेंट विंग के ज्वाइंट कमिश्नर
के पद पर इस बार मेरी पोस्टिंग हुई थी। श्री चक्रवर्ती
वाणिज्यिक-कर के कमिश्नर थे और मैं उनका सहयोगी। बाद में श्री चक्रवर्ती ने आईएएस
के पद से त्यागपत्र देकर श्री साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन में रजिस्ट्रार के
पद पर जॉइन कर लिया। इंफोर्समेंट विंग का मुख्य उद्देश्य खुफिया जानकारी इकट्ठा
करना, संदिग्ध जगहों का मुआइना
करना, संबंधित सामग्रियों का
अध्ययन कर काले कारोबारों वाले बिजनेस परिसरों में मुस्तैदी से छापा मारना था। कमिश्नर श्री के. चक्रवर्ती ने मुझे मेरी मनपसंद के अधिकारियों को इस विंग में शामिल
करने की अनुमति प्रदान की। मैं जानता था वाणिज्यक-कर विभाग में शत-प्रतिशत सत्य
निष्ठा वाले अधिकारियों को पाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि इस विभाग में भ्रष्टाचार पूरी तरह से
सुनियोजित एवं संस्थागत ढाँचे का रूप ले चुका था। टैक्स के वार्षिक आंकलन के समय
मुहमांगी रिश्वत देना एक आम बात थी। ईमानदारी की परिभाषा यहाँ बदल चुकी थी। जो अधिकारी अपने हिस्से की रकम से
संतुष्ट हो जाता हो और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर जबरदस्ती वसूली नहीँ करता हो, वह अधिकारी ईमानदार की श्रेणी में गिना जाता हैं। किस
प्रकार से हमारे समाज ने अपने स्वार्थ के निहित कारणों से रिश्वत को अपरोक्ष रूप
से मान्यता दे दी हैं। ईमानदारों की व्यापक परिभाषा में संस्थागत रिश्वतखोरों की
सिंडीकेट भी शामिल कर दी गई हैं।ऐसी अवस्था में इनफोर्समेंट विंग के लिए
ईमानदार अधिकारियों का चयन करना काफी मुश्किल काम था। मैंने मेरे बैचमेट श्री एम.सी. महापात्र से इस
मामले में मदद ली। वे कमिश्नर के सेक्रेटरी थे। उनसे व्यक्तिगत पूछताछ, अधिकारियों के गुप्त प्रतिवेदनों की जाँच के आधार पर
मैंने एक तालिका बनाई।और उसे आधार बनाकर नई विंग का गठन किया। देखते-देखते उस विंग ने ईमानदारी, दक्षता और उत्साह पूर्वक काम करते हुए एक विशिष्ट
ख्याति अर्जित की। यह विंग किसी जगह मुआइना करने तथा छापा मारने से पूर्व अनेक
खुफिया जानकारियाँ लेती थी,आँकड़ों की जाँच करती थी और
व्यापार-पद्धति की विस्तृत जानकारी के बाद अति सावधानी पूर्वक अपनी गोपनीय योजना
बनाती थी।
एक और घटना उदाहरणीय है, जो यह दर्शाती हैं कि राजनैतिक, प्रशासनिक और सामाजिक वातावरण किस तरह किसी व्यक्ति
के व्यवहार को प्रभावित कर टैक्स-चोरी और कालेधन के संग्रह हेतु प्रेरित करता हैं।
हैदराबाद का बेगम-बाजार अनाज, दाल और
मसालों का मुख्य थोक बाजार हैं। हमारी विंग को गहन अध्ययन के
बाद यह पता चला कि यहाँ पर इन सामग्रियों पर टैक्स की बहुत चोरी होती थी। अतः हमने इस क्षेत्र के
कुछ बड़े व्यापारियों पर छापा मारा। छानबीन के बाद यह पता चला कि इन वस्तुओं पर
बड़ी मात्रा में टैक्स चोरी किए जाने का हमारा संदेह बिलकुल सही था।
कुछ दिनों के बाद श्री किमती नामक एक बुजुर्ग अपने पुत्र की तरफ से मुझसे मिलने आए। उनके पुत्र दलहन का बडे व्यापारी थे। किमती ने यह स्वीकार
किया कि हमारे टैक्स का आकलन और मांग सही थी। फिर भी शायद वह मुझे सिखाना चाहते थे कि अनाज व दालों का व्यापार कैसे किया जाता है। वह बोले, ‘‘मैं एक थोक विक्रेता हूँ। आजकल अनाज का व्यापार
ईमानदारी से करते हुए पूरे टैक्स का भुगतान करना किसी लिए भी संभव नहीँ है। एक बैग
पर मुनाफा मिलता है 2 रुपए। जबकि सेल टैक्स देना
पड़ता है 20 रुपए। जब तक हरेक आदमी कानून
के हिसाब से व्यापार नहीँ करता हैं तो किसी भी अकेले व्यक्ति विशेष के लिए पूरा
टैक्स अदा करते हुए व्यापार करना संभव नहीँ है।’’
थोड़ा रुककर फिर बोले,‘‘जो टैक्स सरकार को अदा नहीँ किया जाता है, वह सारा
व्यापारी के लिए मुनाफा नहीं हो जाता।अधिकतर
ग्राहक बिना बिल के सामान खरीदना चाहते हैं ताकि टैक्स नहीं भर्ना पड़े।टैक्स चोरी का काफी हिस्सा सेल-टैक्स, इन्कम-टैक्स,सिविल सप्लाई,म्यूनसिपल कार्पोरेशन,पुलिस आदि के अधिकारियों को रिश्वत
देने में खर्च हो जाता है ,अगर उनकी मांग पूरी नहीं की जाती है तो वे लोग सामान्य
गलती को भी बढ़ा-चढ़ाकर
जटिल बना देते हैं। इसके
अतिरिक्त,कुछ गुंडा लोग और राजनेताओं
को भी खुश रखना पड़ता है। सरकार के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे वे व्यापारियों को इन परेशानियों से बचा सके।एक व्यापारी लागातार इन तत्वों से लड़ाई
करते हुए व्यापार में अपना अस्तित्व बचाए रख सकता है ? इसका आसान और शायद एक ही विकल्प है सिस्टम के साथ
व्यापारी का समझौता करना और अपने फायदे के लिए
इसका उपयोग करना।”
अपने झोले में से उन्होंने अखबार की कुछ कतरने
निकाली और मेरे सामने रख दी। इन कतरनों पर सीमेंट स्कैंडल के बारे में लिखा हुआ
था। तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री ए.आर. अंतुले से जुड़ा हुआ था वह
मसला।
प्रश्न भरी निगाहों से मेरी तरफ देखते हुए वह पूछने
लगा, ‘‘अब आप ही बताइए, एक छोटा व्यापारी घोर भ्रष्टाचार के वातावरण में
ईमानदारी से अपना व्यापार करते हुए अपने टैक्स का भुगतान कर सकता है? जहाँ एक मुख्यमंत्री इतने बड़े भ्रष्टाचार में शामिल
हो और उसके बावजूद भी प्रधानमंत्री उसका बाल भी बाँका नहीँ कर पा रहे हों, तो हमारे जैसे छोटे व्यापारियों की क्या औकात जो
बड़े-बड़े मव्वालियों से... ... ... ..."
किमती के इस वक्तव्य ने मुझे भीतर से हिला दिया। मुझे लगा
कि टैक्स-चोरी जटिल सामाजिक, आर्थिक व
राजनैतिक समस्या है, जिसका हल मुआइना करना या
छापा मारना नहीँ हो सकता है।उनके तर्कों से पूरी तरह सहमत होते हुए मैंने कहा कि रत्ती-भर भी मुझे इस बात में संदेह नहीँ
है कि मैं अकेला टैक्स-चोरी को पूरी तरह या आंशिक रूप से रोक सकूँ।
मगर इनर्फोसमेंट ऑफिसर होने के नाते मेरा एक कर्तव्य बनता है कि मैं जब तक इस
कार्यालय का प्रभारी हूँ तब तक इसे रोकने के लिए भरसक प्रयास करूंगा। आपकी
बातों में वजन होने के बावजूद भी टैक्स तो भरना ही पड़ेगा। मैं केवल पेनल्टी को पाँच गुणा से घटाकर एक गुना कर सकता हूँ, जो कि मेरे अधिकार क्षेत्र में हैं।’’
टैक्स चोरी करना वास्तव में आय बढ़ाने की अमिट भूख का
परिणाम ही नहीँ है। यह दूसरी बात है टैक्स चोरी करने में लालच
एक महत्त्वपूर्ण घटक है। एक व्यक्ति के अपने नियंत्रण से परे अनेक ऐसे जटिल कारण
हैं जिसके कारण वह टैक्स चोरी करने पर विवश हो जाता है। अगर
किसी देश की राजनैतिक प्रणाली काले धन पर निर्भर करती है, तो राजनेताओं की गिद्ध-दृष्टि उद्योग और व्यापार जगत
से काला धन पैदा करने में लगी रहेगी। अगर ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार पूरी तरह
व्याप्त होगा। तो वैधानिक क्लीयरेंस और अन्य सेवाओं को प्राप्त करने के लिए काले
धन की आवश्यकता पड़ेगी। अगर टैक्स चोरी चारों तरफ फैली हुई होगी तो असमान
प्रतिस्पर्धा की वजह से ईमानदार
व्यक्ति व्यापार में टिक नहीँ सकता और कालाबाज़ारी
बढ़ेगी।
दूसरे
अपराधों की तरह टैक्स की चोरी रोकने में भी सामाजिक प्रतिबद्ध
कानून के गंभीर प्रावधानों से कहीं अधिक भूमिका निभा
सकते है, मगर भारत इन दोनों क्षेत्रों में बहुत
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