16.कोयले की ई-मार्केटिंग

16.कोयले की ई-मार्केटिंग
 
हमारे देश में कोयले का विशाल भंडार होने के बावजूद भी कोयले की हमेशा कमी रही है। सकी वजह से कोयले की काला बाजारी, कोल माफिया इस उद्योग के अभिन्न अंग रहे है। राजनैतिक संरक्षण के कारण कोयलाञ्चल में कोल माफिया का जबर्दस्त प्रभाव है। कोल इंडिया के अधिकारियों का तबादला तो ये लोग आनन-फानन में करा सकते है। यहाँ तक कि इन क्षेत्रों के कलेक्टर और एसपी भी इनसे समझौता किए बिना जिले में लंबे समय तक टिक नहीं सकते।
कोयले की कालाबाजारी के बहुत तरीके है,मगर सबसे आसान तरीका यह है कि स्थानीय उद्योग विभाग के अधिकारियों से मिलकर बोगस इंडस्ट्रीज का रजिस्ट्रेशन करा कर कोयले का आवंटन कराना और फिर उस कोयले को काले बाजार में बेचना।कोल इंडिया के अधिकारी भी इस गोरखधंधे का हिस्सा है। कई दशकों से यह रैकेट चल रहा है और इस रैकेट को कोल इंडिया में निर्विवाद रूप से मान्यता प्राप्त है।
इस रैकेट की तह में अवैज्ञानिक व गलत मूल्य नीति है, कोयले का मूल्य डिमांड और  सप्लाई के संतुलन से नहीं होता,बल्कि राजनैतिक आदेश से होता है। यह प्रक्रिया तो रातोंरात तो बदली नहीं जा सकती थी,किन्तु इस क्षेत्र में एक पहल तो की जा सकती थी।
कोल इंडिया की दो अनुषंगी कंपनियों बीसीसीएल और ईसीएल में, सबसे अच्छी ग्रेड का  कोयला है, और यहीं पर कोल माफिया का सबसे अधिक प्रभाव है। कोल माफिया कालाबाजारी से करोड़ों रुपए कमाते हैं और ये कंपनियाँ सालों से घाटे में चल रही हैं।
कोल कंपनियों के अध्यक्षों की एक अनौपचारिक बैठक में मैंने नॉन कोर सेक्टर का कोयला ई-मार्केटिंग द्वारा बेचने का प्रस्ताव रखा। केवल बीसीसीएल के तत्कालीन सीएमडी श्री पार्थ भट्टाचार्य, जो बाद में कोल इंडिया के चेयरमैन बने,इस प्रस्ताव से सहमत थे बाकी सब लोगों को यह प्रस्ताव बहुत अव्यवहारिक लगा।
क्योंकि प्रधानमंत्री से मेरी इस विषया में बात पहले ही हो चुकी थी। उनकी औपचारिक सहमति के लिए एक नोट प्रेषित किया। प्रधानमंत्री ने परीक्षण के तौर पर 1.6 लाख टन कोयला ई-मार्केटिंग द्वारा बेचने की सहमति दी। यह पहला परीक्षण टेस्ट बीसीसीएल में नवंबर 2004 में किया गया। परीक्षण बहुत सफल रहा और 1.32 लाख टन कोयले पर  बीसीसीएल को 1.5 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हुआ।
श्री सोरेन द्वारा ई-ऑक्शन को रोकना -
बीसीसीएल में ई-ऑक्शन को भारी सफलता के बाद में सारी कोल कंपनियों में ई-ऑक्शन लागू करना चाहता था। इस बीच श्री सोरेन फिर से कोयला मंत्री बना दिए गए। मैंने एक नोट बना कर राज्य मंत्री श्री राव के द्वारा श्री सोरेन को भेजा। ई-ऑक्शन की सफलता ने कोयला-माफियाओं को पहले से ही विचलित कर दिया था। वे नहीँ चाहते थे कि ई-ऑक्शन सारी कोल कंपनियों में लागू हो। पहले तो ये फाइल राज्यमंत्री ने अपने पास एक महीने तक रखी और फिर यह लिखते हुए कि इस विषय पर कोई निर्णय लेने के पहले एक विस्तृत प्रजेंटेशन लेने की आवश्यकता है, फाइल को श्री सोरेने के पास भेज दी। श्री सोरेन ने कोई प्रजेंटेशन नहीँ लिया, मगर झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनने के लिए कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा देने के पूर्व उन्होंने आदेश दिया कि भविष्य में ओर कोई ई-ऑक्शन नहीँ होगा। कोयले की मार्केटिंग में पारदर्शिता लाने का यह प्रस्ताव फूल की तरह खिलने से पहले ही मुरझा गया। दूसरी कोल कम्पनियों में ई-ऑक्शन लागू करने वाली फाइल मंत्रियों के पास विचारधीन पड़ी हुई थी, तभी मुझे गुहावटी से एक टेलीग्राम आया कि एनईसीएल से जाने वाली प्रत्येक रैक पर कोल माफिया पाँच लाख रुपये का प्रीमियम लेते हैं। एनईसीएल के कोयले की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी है। थोड़ी बहुत सल्फर की मात्रा अवश्य है, मगर कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू बहुत ज्यादा है। इसलिए इस कोयले की उत्तर प्रदेश और बिहार की र्इटों की भट्टियों में ज्यादा डिमांड है। एक तरफ एनर्इसीएल घाटे में चल रही थी और दूसरी तरफ कोल माफिया उसी कोयले से करोड़ों रुपए कमा रहे थे। मैंने कोल इण्डिया के चेयरमैन को एनईसीएल का सारा कोयला ई-मार्केटिंग से बेचने की सलाह दी। जो नतीजे हमें मिले, वे सब हमारी कल्पना से परे थे। कोल इंडिया को एक रैक कोयला बेचने पर नोटिफाइड प्राइस से ऊपर पच्चीस लाख से ज्यादा प्रीमियम मिलने लगा।
 जब श्री सोरेन ने झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनने के लिए कोयला मंत्रालय से त्यागपत्र दिया तब फिर से प्रधानमंत्री ने कोयला मंत्रालय का प्रभार संभाला और उन्होंने सारी कोल कम्पनियों में ई-ऑक्शन लागू करने की अनुमति प्राप्त दे दीमेरे रिटायर होने तक ई-ऑक्शन बहुत गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका होता और अब किसी भी मंत्री के लिए उसे रद्द करना असंभव था।  

मेरा विचार था कोयले के उत्पादन के कम से कम पच्चीस प्रतिशत की ई-ऑक्शन से मार्केटिंग की जाए।ताकि घरेलू कोयले की कीमतें पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीके से तय की जा सके। 

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