14. कैप्टिव कोल ब्लॉकों का आवंटन

14. कैप्टिव कोल ब्लॉकों का आवंटन

स्क्रीनिंग कमेटी के द्वारा प्राइवेट सेक्टर को कैप्टिव प्रयोग हेतु कोल ब्लॉक-आवंटकरने की प्रक्रिया सन 1993 में चालू हुई। मगर कैप्टिव माइनिंग के लिए कौन-कौनसे कोल ब्लॉक आवंटित किये जायेंगे, इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीँ दी गई थी। कोल ब्लॉक की ज्योलोजिकल रिपोर्ट एक गोपनीय दस्तावेज़ था,और आवेदकों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होती थी, वे लोग सी.एम.पी.डी.आई.एल. से चोरी-छुपे जानकारी हासिल करते थे। सन 1993 से 2002 तक केवल 15 ब्लॉक प्राइवेट पार्टियों को आवंटित किये गए थे अर्थात 1.5 ब्लॉक प्रतिवर्ष की दर से। अधिकतर ब्लॉकों के लिए आवेदकों की संख्या भी सीमित थी। धीरे-धीरे आवेदकों की संख्या बढ़ने लगी। सबको ब्लॉक मिल सके,इसलिए मंत्रालय ने उन ब्लॉकों को सब-ब्लॉकों में बाँटना शुरू कर दिया
जब मैंने मंत्रालय का चार्ज लिया तब प्रत्येक ब्लॉक के लिए आवेदकों की संख्या काफी बढ़ गई थी, यद्यपि इकाई अंक से ज्यादा नहीँ थी। बहुत सारे आवेदक हर  ब्लॉक के चयन के मापदंड पूरे कर रहे थे। इस वजह से उनका निष्पक्ष चयन करना मुश्किल हो रहा था।एक ब्लॉक को अनेक सब-ब्लॉकों में बाँटकर सभी योग्य आवेदकों को आवंटित करना न केवल अव्यावहारिक बल्कि गलत भी था। खुली बोली द्वारा आवंटन करना इस समस्या का अच्छा समाधान हो सकता था। इससे न केवल निर्णय लेने में पारदर्शिता आएगी,बल्कि सरकार को  अतिरिक्त राजस्व की भी प्राप्ति होगी।
सरकार के पास पहले से ही कोयले के रिजर्व और गुणवत्ता पर आधारित सही तथ्यात्मक आँकड़ों वाली जियोलोजिकल रिपोर्ट उपलब्ध थी। सी॰एम॰पी॰डी॰आई॰एल डिटेल एक्सप्लोरेशन कर चुकी थी। अगर सभी संभावित बोली-कर्त्ताओं को जियोलोजिकल रिपोर्ट देने के बाद खुली बोली लगाई जाती है तो यह कोयले के ब्लॉक आवंटित करने का समरूप, निष्पक्ष, पारदर्शी और तर्क-सम्मत तरीका रहेगा। इसके अतिरिक्त, नीलामी की यह विधि उन कंपनियों के लिए भी न्याय-संगत रहेगी, जिन्हें कैप्टिव ब्लॉक नहीँ मिले है और जिन्हें या तो कोयला आयात करना पड़ रहा है या फिर कोल इण्डिया से कोयला लेना होता है।
प्रधानमंत्री के कोयला-मंत्री का अतिरिक्त प्रभार लेने से पहले ही मैंने इस विषय पर एक  डिस्कशन पेपर बना लिया था। सभी स्टेक होल्डरों को ओपन डिस्कशन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। इस डिस्कशन में उन सभी कंपनियों को आमंत्रित किया गया,जिनके आवेदन मंत्रालय में लंबे समय से लंबित थे। इसके अलावा,कॉनफेडरेशन ऑफ़ इंडस्ट्री (CII), फेडरेशन ऑफ इन्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉर्मस एंड इंडस्ट्री (FICCI), फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्री (FIMI) एवं एसोसियेटेड चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इण्डिया (ASSOCHAM)  और संबन्धित मंत्रालयों के अधिकारी भी इस विचार-विमर्श में शामिल हुए।केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों की नीलामी के बारे में अलग-अलग राय थी,परंतु अधिकांश उद्योगपति और उद्योग संघ इस प्रक्रिया के पक्ष में नहीं थे। उनका मत था कि ई-नीलामी से कोल ब्लॉकों की कीमत बढ़ जाएगी, लेकिन यह पूरी तरह बेबुनियाद था। खुली नीलामी में प्रतिभागी अनुभवी व्यापारी थे।और वे कभी इतनी ऊँची बोली नहीँ लगा सकते थे कि उनकी खदान से निकलने  कोयले की कीमत कोल इण्डिया की कीमत से ज्यादा हो जाए।  स्वाभाविक है कि इंडस्ट्री वाले कोई भी मुफ्त में मिलने वाली चीज के पैसे क्यों देना चाहेगा ?वास्तव में कुछ हद तक कोर्पोरेट इण्डिया भी पारदर्शिता के खिलाफ था।
स्टेक-होल्डरों के संशय के बावजूद मेरा यह विचार था कि आवंटन प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए इससे अच्छा और कोई तरीका नहीं हो सकता। अतः मैंने पॉलिसी नोट बनाकर जुलाई माह के मध्य में कोयला राज्यमंत्री श्री दसारी नारायण राव के सन्मुख प्रस्तुत कर दिया।
खुली बोली की प्रक्रिया की साथर्कता की जाँच हेतु मैंने कानून विभाग से सलाह ली। साथ ही साथ,मैंने सी॰एम॰पी॰डी॰आई॰एल को निर्देश दिए कि किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थान की मदद  से इस हेतु बोली दस्तावेज बनाए जाए एवं मूल्यांकन के मापदंड निर्धारित किए जाए, ताकि कैबिनेट की स्वीकृति मिलते ही खुली बोली की कार्यवाही शुरू की जा सके। ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर कैप्टिव ब्लॉकों की तालिका अपलोड कर दी गई। इसके अतिरिक्त, अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से भी इस बारे में अधिकाधिक प्रचार-प्रसार किया गया। मुझे विश्वास था कि कैलेंडर वर्ष खत्म होते-होते नई प्रक्रिया लागू हो सकती है। मगर इसमें आने वाली बाधाओं का मुझे अंदाज नहीं था।कोयला राज्यमंत्री ने कुछ स्पष्टीकरण मांगते हुए वह फाइल लौटा दी। 30 जुलाई 2004 को मैंने उनके सवालों का सटीक जवाब देते हुए फिर से उस फाइल को प्रधानमंत्री (तब तक कोयला मंत्री का अतिरिक्त प्रभार ले चुके थे) को प्रस्तुत कर दी
प्रधानमंत्री द्वारा खुली बोली का अनुमोदन:-
20 अगस्त 2004 को प्रधानमंत्री ने खुली बोली द्वारा आवंटन की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी। उन्होंने एक कैबिनेट नोट बनाने का आदेश दिया। प्रधानमंत्री की मंजूरी मिलने के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से एक नोट आया, जिसमें खुली बोली द्वारा होने वाली समस्याओं का जिक्र किया गया था उसके साथ ही खुली बोली के विरोध में बहुत सारे सांसदों के पत्र भी आने लगे। उनमें श्री नवीन जिंदल भी एक थे।



 कानून मंत्रालय द्वारा कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट में संशोधन के सुझाव:-
कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट की धारा 3() और धारा 34 में प्रस्तावित संशोधन पर कानून मंत्रालय ने सितंबर 2004 को अपनी सलाह प्रदान की। कैबिनेट नोट प्रस्तुत करते समय मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा उठाए गए सभी सवालों पर तर्क-संगत टिप्पणियाँ दी। मैंने आवश्यक वैधानिक सुधारों के लिए अध्यादेश जारी करने की भी सलाह दी, ताकि खुली बोली द्वारा आवंटन की प्रक्रिया जल्दी से जल्दी शुरू की जा सके।  
राज्यमंत्री द्वारा प्रस्ताव को टालना:-
4 अक्टूबर को प्रधानमंत्री को प्रेषित करते हुए राज्यमंत्री ने इस प्रस्ताव पर निम्न टिप्पणी लिखी:-
इस प्रस्ताव पर सहमत होना कठिन है कि स्क्रीनिंग कमिटी पारदर्शिता से निर्णय लेने में सक्षम नहीँ है। प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा आवंटन का प्रस्ताव खारिज कर दिया जाए, क्योंकि इससे कोल ब्लॉक आवंटन में और ज्यादा देरी होगी। कोल माइंस नेशनलाइजेशन एमेंडमेंट बिल, जिसमें वाणिज्यिक खनन के लिए कोल ब्लॉकों का प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा आवंटन करने का प्रस्ताव है, राज्य सभा में ट्रेड यूनियनों और अन्य के कठोर विरोध के कारण लंबित पड़ा हुआ है।"
यह टिप्पणी दो कारणों से महत्त्वपूर्ण थी पहला, प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा कोल ब्लॉकों के आवंटन की पद्धति और राज्य सभा में लंबित पड़े कोल माइन्स नेशनलाइजेशन एमेंडमेंट बिल का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीँ था। कोल सेक्टर ट्रेड यूनियन का विरोध वाणिज्यिक खनन निजी क्षेत्र के लिए खोलने से संबंधित था, खुली बोली से उनका कोई विरोध नहीं था। साफ जाहिर था कि इन असंगत मुद्दों को जोड़कर राज्यमंत्री जान-बूझकर भ्रम पैदा करना चाहते थे, ताकि निर्णय प्रक्रिया में देरी हो। दूसरा, बाद में श्री शिबू सोरेन ने इसी टिप्पणी का प्रयोग करते हुए प्रधानमंत्री का खुली बोली द्वारा आवंटन करने के निर्णय को पलट दिया
श्री राव द्वारा भ्रामक टिप्पणी लिखने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए एक बैठक हुई। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 28 जून 2004 तक प्राप्त सभी आवेदन पत्रों पर निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी की प्रचलित पद्धति द्वारा लिया जाएइस बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में कैबिनेट नोट में आवश्यक संशोधन के निर्देश देते हुए वह फाइल वापस कोयला मंत्रालय को लौटा दी।
दिसंबर के अंत में मैंने आवश्यक स्पष्टीकरणों एवं संशोधनों के साथ वह कैबिनेट नोट फिर से कोयला राज्यमंत्री को पेश किया, जिन्होंने वह नोट श्री शिबू सोरेन के पास अग्रसरित कर दिया। जो उस समय तक फिर से कोयला मंत्री बन चुके थे। जनवरी का आधा महीना निकल गया, किंतु श्री सोरेन ने कैबिनेट नोट को स्वीकार करके फाइल वापस नहीं भेजी।

प्रधानमंत्री द्वारा हस्तक्षेप:-
17 जनवरी 2005 को मैं प्रधानमंत्री से मिला और उन्हें बताया कि कोयला मंत्रालय की कुछ  महत्त्वपूर्ण फाइलों को जान-बूझकर विलंबित किया जा रहा है।मैंने उनके हस्तक्षेप की गुजारिश की। कैप्टिव कोल ब्लॉक आवंटन में प्रतिस्पर्धात्मक खुली बोली का प्रस्ताव उन महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक था। प्रधानमंत्री ने अपने प्रिंसिपल सेक्रेटरी श्री टी.के.ए. नायर को बुलाकर कोयला मंत्री से इस विषय में बात करने की हिदायत दी। उसी शाम मैंने श्री नायर को कैबिनेट नोट की स्वीकृति की अरजेंसी ताते हुए एक नोट लिखा ताकि संसद के आगामी बजट सेशन में आवश्यक विधायी संशोधन किए जा सकें। (परिशिष्ट 14-1)
श्री सोरेन द्वारा खुली बोली द्वारा प्रस्ताव की हत्या:-
प्रधानमंत्री को श्री राव तथा श्री सोरेन द्वारा अवरोध पैदा करने की जानकारी  देने के बावजूद 25 जनवरी 2005 को श्री सोरेन ने उस फाइल पर अपनी टिप्पणी लिखी:
मैंने इस पूरे मुद्दे को अच्छी तरह से समझा और बतौर कोयला मंत्री मैं राज्यमंत्री (कोयला) की दिनांक 4.10.2004 को की गई टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ। अत: इस प्रस्ताव को और आगे बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है।"
श्री राव और श्री सोरेन दोनों ने मिलकर मेरे इस प्रस्ताव पर, जिसका उद्देश्य कोयले के ब्लॉकों का पारदर्शी तरीके से आवंटित करना था,पानी फेर दिया
प्रस्ताव का पुनर्जीव:-
दिनांक 01.03.2005 को झारखंड के मुख्यमंत्री बनने के लिए श्री सोरेन ने कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया तो प्रधानमंत्री ने फिर से कोयला मंत्रालय का प्रभार संभाला। ऐसा लग रहा था मानो तकदीर भी मेरे साथ आँख-मिचौनी खेल खेल रही है। मैंने उस प्रस्ताव को पुनर्जीवित किया और नौ मार्च को कैबिनेट नोट बनाकर इनकी स्वीकृति के लिए प्रेषित कर  दिया।इस कैबिनेट नोट को प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को स्वीकृति दे दी। इसके बाद इसे संबंधित मंत्रालयों और राज्य सरकारों  के पास उनकी टिप्पणी के लिए भेजा गया। सारी टिप्पणियाँ आने के बाद मैंने 21 जून को फाइनल नोट बनाकर राज्यमंत्री के माध्यम से कैबिनेट की सहमति हेतु प्रधानमंत्री के पास भेज दिया।  
राजमंत्री द्वारा इस प्रस्ताव को पटरी से उतारना:-
प्रधानमंत्री के पास फाइल भेजते समय राज्यमंत्री ने  निम्न टिप्पणी की:-
कैबिनेट को इस निर्णय से होने वाले प्रभावों पर विस्तार से गहराई में जाकर सोचने की जरूरत है। प्रतिस्पर्धात्मक बोली में भाग लेने के कारण कीमतों पर होने वाले प्रभाव की वजह से पावर कंपनियाँ विरोध कर रही है।"
खुली बोली की प्रणाली से बिजली की कीमतों पर कोई खास असर नहीँ पड़ेगा, इस मुद्दे पर कई बार विस्तार से बहस हो चुकी थी। बार-बार इन मुद्दों को उठाने का अर्थ खुली बोली प्रणाली को जितना विलंबित किया जा सके, करना था ताकि पुराने ढर्रे वाली आवंटन प्रक्रिया चलती रहे। खेद की बात है कि राज्यमंत्री अपने इस प्रयास में सफल हुए।
 प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी श्री नायर ने 25 जुलाई को कोल बियरिंग राज्यों के मुख्य सचिवों तथा संघ सरकार के उपयोगकर्ता मंत्रालयों के सचिवों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में मैंने यह समझाया कि प्रस्तावित खुली बोली प्रणाली से कोल ब्लॉकों के आवंटन में  पारदर्शिता आएगी और इससे राज्य सरकार और संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों की भूमिका में किसी भी प्रकार का परिवर्तन आने की आशंका नहीँ है।खुली नीलामी से जो भी राजस्व प्राप्त होगा, उससे एक विशेष फंड बनाया जाएगा,जिसका प्रयोग संबंधित कोयलांचलों में सामाजिक और दूसरी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में किया जाएगा।इसलिए राज्यों को इस प्रस्तावित नीति का समर्थन एवं स्वागत करना चाहिए।
इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कैबिनेट नोट में राज्य सरकारों के विचारों को जोड़ा जाए,और, चूँकि कोल माइंस नेशनलाइजेशन एमेंडमेंट बिल को पास होने में काफी समय लगेगा,इसलिए जब तक नई प्रतिस्पर्धात्मक बोली की प्रणाली प्रभाव में नहीँ आ जाती है,तब तक प्रचलित प्रणाली से आवंटन जारी रखा जाए
अब यह साफ हो गया था कि खुली बोली के लिए किसी की भी राजनैतिक मंशा नहीँ है, इसलिए इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अगर राजनैतिक मंशा होती तो अध्यादेश के जरिए कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट में संशोधन किया जा सकता था। प्रधानमंत्री कार्यालय की इच्छा के अनुरूप मैंने कैबिनेट नोट में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के विचारों को सम्मिलित कर आवश्यक संशोधन किए और राज्यमंत्री को प्रेषित कर दिया। राज्यमंत्री ने मेरे रिटायर होने के इंतजार में दिसंबर 2005 तक वह फाइल अपने पास रोककर रखी। मेरे रिटायर होने के बाद दिनांक 12.01.06 को प्रधानमंत्री को फाइल भेजने के बजाए निम्न टिप्पणी के साथ फाइल लौटा दी
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट में आवश्यक संशोधन में होने वाली देरी को  ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया है कि जब तक एक्ट में संशोधन न हो जाए,तब तक प्रचलित पद्धति के अनुसार आवंटन की प्रक्रिया चालू रखी जाए और इस विषय में  जल्दबाजी की कोई आवश्यकता नहीँ है।"


मेरे मंत्रालय छोड़ने के बाद  कोल ब्लॉकों की खुली बोली को दूसरे सभी खनिजों को भी उसी पद्धति के आवंटन करने के बहाने स विषय को कोयला मंत्रालय से खनिज मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया गया चूँकि इस संशोधन के लिए दूसरे मंत्रालय की सहायता मिलनी चाहिए, इसलिए यह सुनिश्चित कर लिया गया कि प्रचलित पद्धति और कुछ सालों तक चलेगी।
उपरोक्त घटनाक्रम से साफ जाहिर है कि न तो औद्योगिक संस्थान और न ही राजनैतिक प्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से खुली बोली को लागू करने के इच्छुक थे। उनका भरसक प्रयास यही था कि खुली बोली प्रणाली को लागू होने से जब तक संभव हो,तब तक रोका जाए।
खुली बोली के प्रस्ताव का अनुमोदन न होने के बावजूद भी मैंने प्रचलित प्रणाली में जितना संभव था, समरूपता और पारदर्शिता लाने का प्रयास किया।अखबारों में विज्ञापनों तथा मंत्रालय की वेबसाइट पर आवंटन के लिए उपलब्ध ब्लॉकों के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध कराई। सभी आवेदकों को सामान्य दर पर जियोलोजिकल रिपोर्ट दी जाने लगी,ताकि आवेदन करने से पूर्व वे इस संपदा के बारे में अच्छी तरह जांच-परख कर सकें। कोयले के खनन के लिए सफल आवेदकों को ज्वाइंट वेंचर बनाने के लिए प्रेरित किया,ताकि छोटे आवेदकों को भी कैप्टिव माइनिंग का लाभ मिल सके।जहाँ ज्वाइंट वेंचर बनाना संभव नहीँ था,वहाँ लीड पार्टनर चयन करने की सुविधा दी गई, जो कोयले का खनन करके दूसरे सहयोगियों को वितरित करेगा। नीति निर्देशों में उपरोक्त परिवर्तन करने से सारे योग्य आवेदकों को समावेश करना संभव हो सका। खुली बोली प्रणाली के अभाव में इससे ज्यादा निष्पक्ष विकल्प संभव नहीँ था



Annexure 14-I
Secret
Ministry of Coal
O/o Secretary (Coal)
.....

The following issues were discussed with the Hon’ble Prime Minister this afternoon.
1. Appointment of Sri Shashi Kumar as CMD, CIL.
2. Permission to be accorded to CBI to register a case against Sri M.K. Thaper, CMD, SECL.
3. E-auction of Coal.
4. Cabinet Note for introduction of open bidding system for allotment of Captive Coal Blocks.

A brief note on the issues is enclosed.

Encl: as above
(P.C. Parakh)
Secretary (Coal)
17.1.05

4. Cabinet Notes for introduction of open bidding system for allotment of Captive Coal Blocks.

After approval of PM as Minister-in -Charge on introduction of open bidding system for allotment of captive coal block, Cabinet Notes for Allotment of Coal Blocks for captive mining based on open bidding system was submitted to MOS(C&M)Minister (Coal) on 23.12.04. The return of the file with the approval of Cabinet Note is awaited. In order to introduce the system at the earliest, it is necessary to bring necessary Legislative amendment in the Budget Session of the Parliament, after approval of the policy by the Cabinet.






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