12.मेरे दूसरे कोयला मंत्री श्री शिबू सोरेन: ‘आए राम, गए राम’
12.मेरे दूसरे कोयला मंत्री श्री शिबू सोरेन: ‘आए राम, गए राम’
पल भर में राजनैतिक चेहरा बदल जाता है। 2004 के आम चुनावों में एनडीए सरकार हार गई और दिल्ली में
यूपीए की सरकार बनी। साझा सरकार। मई 2004 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन को कोयला
मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री का पदभार दिया गया तथा कांग्रेस के श्री दसारी नारायण
को कोयला मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया।
श्री सोरेन अपने साथ श्री प्रदीप दीक्षित को ऑफिसर ऑन
स्पेशियल ड्यूटी के रूप में लाए। अत्यन्त ही प्रबुद्ध, सुशील एवं सुस्पष्ट इंसान। मगर उन्हें सरकार की कार्य
पद्धति का बिलकुल भी ज्ञान नहीँ था। श्री दसारी नारायण के निजी सचिव श्री ए.ए. राव
काफी अनुभवी होने के साथ-साथ तेज-तर्रार थे। मेरा यह सब-कुछ बताने का अर्थ वहाँ की
पृष्ठभूमि के बारे में आपका ध्यान आकर्षित करना था।
उनके पदभार ग्रहण करने पर मैंने
उन्हें कोयला मंत्रालय के कामकाज की
जानकारी दी और कुछ ऐसे विषय जिन पर तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत थी,उनका ध्यान
आकर्षित किया। जैसे - देश में कोयले की भयंकर कमी, सारे पावर प्लांटों में कोयले का क्रिटिकल स्टॉक, नौ महीने से कोल इंडिया में कोई फुलटाइम चेयरमैन की नियुक्ति का न होना इत्यादि-इत्यादि। इसके अलावा, भूमि-अधिग्रहण की समस्याएं, पर्यावरण
एवं फॉरेस्ट क्लियरेंस में होने वाली देरी,कॉमर्शियल माइनिंग के लिए
कोल-सेक्टरों को खोलना, कोल ब्लॉक आबंटन में
पारदर्शिता लाना और कोल मार्केटिंग में माफियाओं की भूमिका खत्म करना आदि राजनैतिक स्तर पर ध्यान देने योग्य मुद्दे थे। लेकिन मुझे आभास हो रहा था कि मंत्रियों में इन मुद्दों की खास अहमियत नहीँ थी। उनकी विशेष अभिरूचि के विषय थे- कोल ब्लॉकों का
शीघ्र आबंटन, कोल कंपनी के अधिकारियों का
स्थानांतरण, कोल इंडिया में अधिक रोजगार
पैदा करना और कोल लिंकेज को अनुमति देना, भले ही, नए लिंकेज के लिए हमारे पास कोयला उपलब्ध न हो।इन मुद्दों पर मेरे विचार मंत्रियों से पूरी तरह अलग थे। कुछ सप्ताह ही
बीते होंगे कि श्री सोरेन के खिलाफ किसी पुराने हत्याकांड के सिलसिले में
गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया। श्री सोरेन भूमिगत हो
गए। आखिरकार उन्होंने 24 जुलाई 2004 को कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
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