10. पब्लिक इंटरप्राइजेज डिपार्टमेन्ट : राजनैतिक दबाव

10. पब्लिक इंटरप्राइजेज डिपार्टमेन्ट : राजनैतिक दबाव
 
जुलाई 2000 में मेरी पोस्टिंग पब्लिक इंटरप्राइजेज विभाग में हो गई। आंध्रप्रदेश के ज्यादातर सरकारी उपक्रम घाटे में चल रहे थे। आंध्रप्रदेश सरकार के वित्तीय रिस्ट्रक्चरिंग का एक प्रस्ताव वर्ल्ड बैंक के विचाराधीन था। वर्ल्ड बैंक ने वित्तीय सहायता देने के लिए एक शर्त रखी कि  घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों  निजीकरण कराया जाए। इस हेतु एक क्रियान्वयन सचिवालय बनाया गया, जिसे यू.के. इंटरनेशनल डेवलपमेंट डिपार्टमेन्ट की तरफ से मदद मिल रही थी। मैं लोक उपक्रम विभाग का सेक्रेटरी होने के नाते इस सचिवालय का एक्स-ऑफिसियो चेयरमैन था। एक बड़ी सरकारी कंपनी  निजाम शुगर लिमिटेड के निजीकरण का काम चल रहा  था। सन् 1934 में हैदराबाद के निजाम द्वारा इस कंपनी को खोला गया था और उस समय वह एशिया की सबसे बड़ी शुगर मिल मानी जाती थी। इस कंपनी के अंतर्गत राज्य के तीन अंचलों में फैली छह शुगर मिल और तीन डिस्टलरिज आती थी। यह निर्णय लिया गया कि कंपनी की सारी इकाइयों को एक-एककर खुली नीलामी के माध्यम से बेच दिया जाए। दो शुगर मिलों तथा एक डिस्टलरी को सफलतापूर्वक बेच दिया गया। उन्हें बेचने पर हमें सलाहकार द्वारा निर्धारित कीमतों से ज्यादा धनराशि प्राप्त हुई। जिन लोगों ने ये मिलें खरीदी थी, उनके पास पर्याप्त पैसा भी था और शुगर मिल का अनुभव भी। अधिकतम प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए मिलों की नीलामी अलग-अलग फेजों में की गई थी।
तीन यूनिटों के निजीकरण होने के बाद शक्कर नगर के मुख्य यूनिट के विज्ञापन प्रक्रिया  शुरू की गई। विज्ञापन अभी जारी भी नहीं हुआ था कि एक प्राइवेट कंपनी मैसर्स गोल्डस्टोन एक्सपोर्ट लिमिटेड ने शुगर मिनिस्टर को अनापेक्षित प्रस्ताव दिया। शुगर मिनिस्टर इस प्रस्ताव को जांच के लिए मेरे पास भेज दिया।  
सरकार ने वित्त मंत्री के नेतृत्व में एक कैबिनेट समिति का गठन किया। निजीकरण के प्रस्तावों की जाँच के अनुमोदन के लिए जहाँ-जहाँ पर ये यूनिटें अवस्थित थीं, वहाँ-वहाँ के मंत्रियों को समिति की बैठकों में विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता था। मैंने मेसर्स गोल्डस्टोन एक्सपोर्ट लिमिटेड के अनापेक्षित प्रस्ताव की जाँच की। जाँच करने के उपरांत मैंने समिति को सलाह दी, "चूँकि पहले तो निविदा प्रक्रिया जारी है, इसलिए गोल्डस्टोन के अनपेक्षित प्रस्ताव को स्वीकृत करना अनुचित होगा। दूसरा, गोल्डस्टोन को शुगर इंडस्ट्री का कोई अनुभव नहीँ है। गोल्डस्टोन तो कंपनी की बहाली के बारे बहाने थोड़ी-सी पूंजी लगाने का वायदा करके निजाम शुगर की करोड़ों रुपए की संपत्ति हथियाना चाहता है।’’ क्रियान्वयन सचिवालय के सलाहकार मेरे विचारों से पूरी तरह सहमत थे। मुझे उम्मीद थी कि समिति इस प्रस्ताव को जरुर अस्वीकार कर देगी। मगर ऐसा नहीँ हुआ। चेयरमैन ने गोल्डस्टोन को अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया। उसने प्रेजेंटेशन दिया, तब भी मैंने उनके ऑफर को खारिज करने के बारे में अपने विचार दोहराए। मेरी बात फिर भी नहीँ सुनी गई। समिति ने गोल्डस्टोन को अपने ऑफर में वृद्धि करने की सलाह दी। समिति की छह-सात बार बैठकें हुई। हर बैठक में गोल्डस्टोन अपने प्रस्ताव में कुछ छोटा-मोटा सुधार कर नया प्रेजेंटेशन देता और मैंने  हर बैठक में उनके हर ऑफर को खारिज करने की सलाह दी। अंत में, समिति ने इस मामले में अंतिम निर्णय के लिए मुख्यमंत्री की सलाह लेने का सुझाव दिया। इसलिए मुख्यमंत्री श्री चंद्र बाबू नायडु के साथ एक  बैठक रखी गई। वित्तमंत्री ने मुख्यमंत्री के सामने गोल्डस्टोन के प्रस्ताव का संक्षिप्त ब्यौरा रखा और समिति द्वारा इस ऑफर पर सहमत होने के विचार भी रखे गए, मैंने अपनी पुरानी बात ही दोहराई और अनापेक्षित बिड को रद्द करने तथा खुली निविदा आमंत्रित करने के सुझाव दिए। दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मेरे हिसाब से अगर कैबिनेट कमेटी के सारे मंत्री और संबंधित जिलों के मंत्री इस ऑफर के पक्ष में हैं तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।’’ मैं नीरव था, मगर मुझे श्री नायडु से ऐसी उम्मीद नहीँ थी।
सारे मंत्रियों के जाने के बाद मैंने उनसे कहा, ‘‘इस ऑफर को स्वीकार करना ठीक नहीँ होगा। मेरे हिसाब से हमें खुली निविदा के प्रचलित और पारदर्शी नियमों का अनुपालन करना चाहिए।’’
मुख्यमंत्री मेरी बात से सहमत थे। मगर उन पर राजनैतिक दबाव उन्हें मेरी सही सिफारिशों के खिलाफ ले जा रहा था। मुख्यमंत्री ने मुझे कहा, ‘‘आप तो जानते ही हो, श्री चंद्रशेखर राव ने अभी-अभी तेलुगु देशम पार्टी छोड़कर एक नई पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति बनाई है। राज्य में शीघ्र ही पंचायत चुनाव होने वाले हैं।ऐसे समय में मेरे लिए सभी मंत्रियों की इच्छा के विरुद्ध कोई निर्णय लेना संभव नहीं है।’’
यह बात सुनकर मैं स्तब्ध था। श्री नायडु से कभी भी मुझे ऐसी उम्मीद नहीँ थी। इस प्रस्ताव के पक्ष में मेरी आत्मा गवाही नहीँ दे रही थी
ऑफिस पहुँचते ही तुरंत मैंने मुख्य-सचिव को एक नोट लिखा कि शायद कैबिनेट कमेटी को मुझ पर विश्वास नहीँ है। इस अवस्था में मेरे लिए यही उचित रहेगा कि मैं यह कार्य छोड़ दूँ, ताकि सरकार अपने किसी एक अधिकारी को सचिव नियुक्त कर सके,जिस पर कमेटी को पूर्ण विश्वास हो (परिशिष्ट 10-1)। इसके साथ-साथ मैं भी दो महीने के अर्जित अवकाश पर चला गया
अभी भी मैं नहीँ समझ पाया हूँ कि किस तरह गोल्डस्टोन ने मंत्रियों के इतने बड़े समूह को ऐसा बेहूदा प्रस्ताव मानने के लिए राजी कर दिया?
आखिरकार निजाम शुगर लिमिटेड का निजीकरण एक बहुत बड़ा राजनैतिक मुद्दा बन गया। निजीकरण की प्रक्रिया की जाँच के लिए विधायकों की एक समिति बनाई गई। उस समिति ने मेसर्स गोल्ड स्टोन के अनापेक्षित ऑफर को मानने के लिए कैबिनेट कमेटी की कड़ी भर्त्सना की(परिशिष्ट 10-2)। बात तो सही ही थी, अंधेरे में आखिरकार कब तक तीर चलाए जाते? कभी न कभी तो प्रकाश होना ही था। खुली निविदा के पारदर्शी नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर गैर पारंपरिक तरीकों को अपनाने से वह मामला आखिरकार अनावश्यक रूप से कानूनी दाँव पेंच में उलझकर रह गया। दस साल गुजर गए। यह मसला हाईकोर्ट में हैं। राज्य सरकार अभी भी परेशान है।

Annexure 10-I
CONFIDENTIAL


GOVERNMENT OF ANDHRA PRADESH
PUBLIC ENTERPRISES DEPARTMENT

C.NO.45/PSP/PE/2001                      Date : 19-5-2001

Based on the course of discussions at the last few meetings of the cabinet Sub Committee on P.E Reforms, I feel that I do not enjoy full confidence and support from the group of Ministers who are involved in the process of privatisation of Nizam  Sugars Ltd.
2. Privatization  of SLPEs is a very difficult and sensitive program and can not be inplemented by Head of public Enterprises Dept. alone without total support and cooperation from all those who are involved in the process. I feel that I have not been able  to effectively communicate and convince the group of Ministers that the approach being suggested by the implementation Secretariat is the best approach is the circumstances.
3. In the absence of total understanding between thr implementation Secretariat, Group of Ministers, and the Chief Executives of the companies concerned, the privatisation programme may not proceed as desired and may have serious financial and political implications for the Government.
4. I would, therefore, suggest that Government may consider appointing another suitable officer to head public Enterprises Department who enjoys confidence of the Cabinet Sub Committe and group of Ministers, and who will be able to steer the program successfully.
5. In order to enable the Governemnt to take a decision, I propose to proceed on two months earned leave with effect from 28th May, 2001.
 
Prt. Secretary
   P.E Dept.
Chief Secretary

Copy to Sri S.V Prasad, IAS, Prl. Secretary to Chief Minister with a request to fix an appontment with the Chief Minister so that I can explain my problem to him.   



Annexure 10-II

Extracts from the report of the House Committee of the Andhra Pradesh Legislature that enquired Into the Irregularities by the Private Management of Nizam Sugars Limited, 31st of August 2006. 
Page 57
“The Committee express appreciation of the above comments of Mr. Parakh, which highlighted the potential loss to the government in case of acceptant of the GEL proposal. Extent of this loss is Rs. 308 crore.”
Page 68
“34(a) The Committee has earlier referred to the views expressed by Sri P.C. Parakh, I.A.S. Former Principal Secretary of Public Enterprises Department, who was also in charge of IS in early 2001. In our view, he showed commendable perception of the consequences and implications underlying the acceptance of the unsolicited proposal of GELCON. In this connection he presented his views on the unsolicited proposal to the CSC in the meeting held on 1-05-2001 with absolute clarity to impress upon the CSC how it is undesirable for the government to accept the GEL proposal.”
Page 72
The CSC decides in 7 meetings for re-advertisement of the 4 units after rejection of GEL proposals. But every time, one minister or the other interfered and prevented the advertisement under pressure from GELCON. In this connection the ministers named below played adubious role. 
1. *************
2. *************
3. *************
Page 73

It is clear that the CSC was fully aware that in case of approval of the unsolicited proposal, the government would sustain loss of more than Rs. 305 crore as explained by Sri P.C. Parakh. Against this background the unsolicited proposal was approved on 22-09-2001 only to favour GEL out of the way and against rules. 

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