1. आंध्रप्रदेश कैडर: प्रथम सोपान का श्री गणेश

1. आंध्रप्रदेश कैडर: प्रथम सोपान का श्री गणेश
जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। जीवन में कभी मैं आईएएस बनूँगा, ऐसा मैंने सोचा था। रूड़की विश्वविद्यालय (वर्तमान आईआईटी, रूड़की) से सन् 1966 में एप्लाइड जियोलोजी में एम.एससी. करने के उपरान्त मैं एक ऐसे चौराहे पर खड़ा था। कौन-सा रास्ता मुझे जीवन के गंतव्य स्थान पर ले जाएगा? मैं उसे तलाश करने लगा। इधर संघ लोक सेवा आयोग से जियोलोजिस्ट पद के लिए कोई वैकेन्सी नहीं निकल रही थी, मैंने उच्च अध्ययन जारी रखने के लिए पी.एचडी. ज्वॉइन कर ली। दो-तीन महीने ही हुए होंगे कि नेशनल मिनरल डेवलमेंट कोरपोरेशन में जियोलोजिस्ट के तीन पदों की वैकेन्सी निकली। उसका आवेदन मैंने भरा। बड़ों का आशीर्वाद, भाग्य और परिश्रम रंग लाया, मेरा उसमें चयन हो गया। एनएमडीसी ज्वाइन करने के बाद एक साल की फील्ड ट्रेनिंग शुरू हुई,पहली पोस्टिंग मिली बस्तर के बेलाडिला खदान की आयरन माइन्स में। चार महीने  बाद अगली पोस्टिंग खेतड़ी (राजस्थान) में हुई उस समय वहाँ अरावली पर्वतमाला में तांबे की खोज का कार्य चल रहा था। एक साल की ट्रेनिंग खत्म होते-होते नेशनल मिनरल डेवलपमेन्ट कोरपोरेशन में से विलग हो कर एक नई कंपनी हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का जन्म हुआ। नेशनल मिनरल डेवलपमेन्ट कोरपोरेशन के विभाजन के बाद अधिकारियों को दोनों कंपनियों में बाँट दिया गया। मेरा और मदान का अलाटमेंट हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में हुआ। मदान के पिताजी सरकार में डिप्टी सेक्रेटरी रह चुके थे। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि अगर उनका बेटा आईएएस बन जाता है तो वह केवल उच्च स्तरीय जीवन जी सकता है वरन् उनकी सामाजिक मान-मर्यादा में भी चार चाँद लग जाएंगे। बस, पिता की ख्वाहिश की छोटी-सी चिनगारी बेटे के भीतर महत्त्वाकांक्षा की अग्नि बनकर धधकने लगी। एक से भले दो, सोचकर मदान ने मुझे भी इस परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित किया।मदान की प्रेरणा से मैंने भी इस परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया।तत्पश्चात मैंने भी इस परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया और तदनुरूप विषयों का मन ही मन चयन करने लगा। फिजिक्स और मैथेमेटिक्स से संपर्क टूटे हुए काफी अर्सा बीत चुका था, जियोलोजी के इर्द-गिर्द झाँकने पर मुझे मेरे स्वभाव के अनुरूप जियोग्राफी एवं इतिहास विषय ज्यादा ठीक लगे। जबकि मदान की अभिरुचि  कुछ और थी ज्यादा अंक स्कोर करने के चक्कर में मैथेमेटिक्स और रसियन लेंग्वेज का उसने चयन किया, जियोलोजी के अलावा। किस्मत की बात ही कहिए, हम दोनों ने खूब मेहनत की, मगर मेरा आईएएस में चयन हो गया और मदान का नहीं। कुछ साल हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में काम करने के बाद मदान आस्ट्रेलिया ले गए और वहाँ अपनी एक्स्प्लोरेशन कंपनी खोल दी।  आईएएस की परिवीक्षा प्रशिक्षण पूरा करने के उपरांत आंध्रप्रदेश में आईएएस प्रोबेशनर के रूप में  मेरे व्यवसायिक कैरियर का पहला सोपान प्रारंभ हुआ। मेरे कई दोस्त आज भी पूछते हैं,"मैं आईएएस क्यों बनना चाहता था?" आज भी मेरा जबाव यही होता है, " मैंने यह देखा कि इस नौकरी के फलक की ज्यामिति बहुत बड़ी एवं विस्तृत थी,जबकि दूसरी नौकरियों में ऐसा नहीं हैं। भले ही, दूसरी नौकरियों में पैसे ज्यादा मिलते हो, मगर एक गरीब दिहाड़ी मजदूर से लेकर धन-कुबेर उद्योगपति तक और गाँव के एक सरपंच से लेकर देश के प्रधानमंत्री के साथ काम करने का  अवसर केवल इसी नौकरी में मिल सकता है। सही मायने में यह नौकरी अतुलनीय हैं। जहाँ केन्द्र और राज्य सरकार के साथ अलग-अलग विभागों में काम करने का अवसर मिलता हैं। मैं नेशनल मिनरल डवलपमेन्ट कॉरपोरेशन में अलग हुई माइनिंग कंपनी हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड की नौकरी छोड़कर इस सर्विस के प्रथम सोपान पर आरूढ़ हुआ था और इस नौकरी के अंतिम सोपान में मेरी पोस्टिंग कोयला मंत्रालय के सचिव के पद पर हुई,जिसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम फैलाने वाली बड़ी माइनिंग कोल कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड  आती है। यह  विचित्र संयोग था कि मेरे व्यवसायिक जीवन के पूर्वार्द्ध में जिसे छोड़ा, जीवन के उत्तरार्द्ध में उसे पाया। अकादमिक पृष्ठभूमि ने मुझे बहुत शीघ्र ही कोल इंडस्ट्री को बहुत नजदीकी से सूक्ष्मतापूर्वक समझने में मदद की।

सभी प्रदेशों को अपने-अपने स्टेट कैडर का आवंटन हुआ, मेरा अलाटमेंट आंध्रप्रदेश के लिए हुआ। आंध्रप्रदेश में सात अधिकारियों का अलाटमेंट हुआ था जिसमें केवल एक आंध्रप्रदेश का था बाकी छ राजस्थान,उत्तरप्रदेश और ओड़िशा से थे। हम सभी नॉर्थ इंडिया से थे तो मुझे अपनी दूसरे साथियों की तरह अज्ञा भाषा और अज्ञा सांस्कृतिक परिवेश में अपनी जिंदगी गुजारने की चिंता होने लगी। क्या पूरी तरह से अलग तरह से सांस्कृतिक परिवेश वाले हम सफलतापूर्वक अपने कार्य का निष्पादन कर पाएँगे? मसूरी की ट्रेनिंग खत्म होने के बाद और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग शुरू होने के पहले हमें एक महीने हैदरवाद में सचिवालय और विभिन्न निर्देशालयों की ट्रेनिंग करनी थी। जनरल एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी (पॉलिटिकल) श्री वल्लीयाप्पन ने हैदराबाद में हमारे प्रशिक्षण प्रभारी थे। उन्होंने हमारी प्रशिक्षण में बहुत ही दिलचस्पी दिखाई और सहयोग प्रदान किया। वे मिलनसार,हंसमुख और जिन्दादिल इंसान थे। कब पूरा महीना गुजर गया, पता ही नहीं चला। उनके चेहरे की ओजस्विता और मंद-मंद मधुर मुस्कान के भीतर हमारे सांस्कृतिक विच्छिन्नता के दु:ख-दर्द यूँ पिघल गए जैसे प्रचंड धूप में हिमालय से बर्फ। उनसे मिलना मात्र हमारे लिए किसी दर्द निवारक दवाई से कम नहीँ था।इसके अतिरिक्त,एक बार आईएएस ऑफिसर्स ऐसोसियशन के वरिष्ठ अधिकारियों ने हमें चाय पर बुलाया। इस बैठक ने हमारे भीतर आंध्रप्रदेश के प्रति काफी सौहार्द्र सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न किए। ऐसा लगने लगा कि हम अलग-अलग नहीं,वरन् किसी अच्छी तरह गूँथी हुई विशिष्ट कम्यूनिटी के सदस्य हैं।
हमें प्रोटोकॉल के अनुसार गर्वनर, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से मुलाकात करनी होती थी। आज भी याद है उस समय श्री के. ब्रह्मानंद रेड्डी मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उसके कार्यालयी निवास स्थान में मिलाने के लिए सुबह 10 बजे का हमें समय दिया गया। निश्चित समय पर हम सभी तैयार होकर उनके ऑफिस पहुँचे। खुले दिल से श्री रेड्डी ने हमारी आवभगत एवं अभिवादन किया। हमारे साथ कम से कम आधा घंटा समय उन्होंने बिताया। हमारी पृष्ठभूमि की जानकारी लेने के साथ-साथ उन्हें हमसे क्या उम्मीद हैं, इसी विषय पर विशद चर्चा की। आज भी एक हृदयस्पर्शी बात उनकी मुझे अच्छी तरह याद है जब हम उनसे विदा ले रहे थे ‘‘आज से आप तो राजस्थान के हो उत्तरप्रदेश, बिहार और ही ओड़िशा के आज से आप सभी का राज्य आंध्रप्रदेश हैं। इसका और इसकी जनता के विकास का भार आपके कंधों पर है, जो आपकी योग्यता, कर्मठता और अथक परिश्रम पर निर्भर करता हैं। मुझे आशा ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास हैं कि आप सभी मेरी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। अगर आपको कोई समस्या या दिक्कत आये तो आप मेरे पास कभी-भी बेहिचक सकते हैं। मेरे घर के दरवाजे आपके लिए चौबीस घंटे खुले हैं।’’
मुख्यमंत्री के इन प्रतिश्रुति मूलक शब्दों ने हमारा मनमोह लिया था और आंध्रप्रदेश को दत्तक राज्य के रूप में स्वीकार करने आने वाली चिंताओं से कोसों दूर कर दिया था। क्या तत्कालीन मुख्यमंत्री का यह नेशनल आउटलुक नहीं था? प्रांतीयवाद की संकीर्ण भावना से ऊपर उठकर क्या इस जमाने के नेताओं में ऐसी सोच पाई जाती हैं? आंध्रप्रदेश में काम करना मेरे लिए किसी परम सौभाग्य से कम नहीं था, इस राज्य के जिस हिस्से में जिस हैसियत से मैंने अपना काम किया, मुझे वहाँ की जनता-जर्नादन, मेरे स्टॉफ, साथियों,राजनेताओं का मुझे भरपूर सहयोग एवं सम्मान प्राप्त हुआ।

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